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अमीर क़ज़लबाश शायरी | शाही शायरी

अमीर क़ज़लबाश शेर

33 शेर

ख़ाली हाथ निकल घर से
ज़ाद-ए-सफ़र हुश्यारी रख

अमीर क़ज़लबाश




आइने से नज़र चुराते हैं
जब से अपना जवाब देखा है

अमीर क़ज़लबाश




इतना बेदारियों से काम न लो
दोस्तो ख़्वाब भी ज़रूरी है

अमीर क़ज़लबाश




इक परिंदा अभी उड़ान में है
तीर हर शख़्स की कमान में है

अमीर क़ज़लबाश




होना पड़ा है ख़ूगर-ए-ग़म भी ख़ुशी की ख़ैर
वो मुझ पे मेहरबाँ हैं मगर बे-रुख़ी के साथ

अमीर क़ज़लबाश




हर क़दम पे नाकामी हर क़दम पे महरूमी
ग़ालिबन कोई दुश्मन दोस्तों में शामिल है

It was as if amidst my friends there was an enemy
A failure and deprived at every step did I remain

अमीर क़ज़लबाश




एक ख़बर है तेरे लिए
दिल पर पत्थर भारी रख

अमीर क़ज़लबाश




अपने हमराह ख़ुद चला करना
कौन आएगा मत रुका करना

अमीर क़ज़लबाश




अब सिपर ढूँड कोई अपने लिए
तीर कम रह गए कमानों में

अमीर क़ज़लबाश