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अमीर मीनाई शायरी | शाही शायरी

अमीर मीनाई शेर

117 शेर

वस्ल में ख़ाली हुई ग़ैर से महफ़िल तो क्या
शर्म भी जाए तो मैं जानूँ कि तन्हाई हुई

so what if all my rivals from the gathering have gone
when her coyness too departs will we be then alone

अमीर मीनाई




वो और वा'दा वस्ल का क़ासिद नहीं नहीं
सच सच बता ये लफ़्ज़ उन्हीं की ज़बाँ के हैं

अमीर मीनाई




ये कहूँगा ये कहूँगा ये अभी कहते हो
सामने उन के भी जब हज़रत-ए-दिल याद रहे

अमीर मीनाई




ज़ीस्त का ए'तिबार क्या है 'अमीर'
आदमी बुलबुला है पानी का

अमीर मीनाई




ज़ब्त देखो उधर निगाह न की
मर गए मरते मरते आह न की

अमीर मीनाई




ज़ाहिद उमीद-ए-रहमत-ए-हक़ और हज्व-ए-मय
पहले शराब पी के गुनाह-गार भी तो हो

अमीर मीनाई




उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो
हर बात में लज़्ज़त है अगर दिल में मज़ा हो

अमीर मीनाई




ये भी इक बात है अदावत की
रोज़ा रक्खा जो हम ने दावत की

अमीर मीनाई




यार पहलू में है तन्हाई है कह दो निकले
आज क्यूँ दिल में छुपी बैठी है हसरत मेरी

my love beside me, solitude, tell them to play a part
why do my desires cower hidden in my heart

अमीर मीनाई