मिरा ख़त उस ने पढ़ा पढ़ के नामा-बर से कहा
यही जवाब है इस का कोई जवाब नहीं
अमीर मीनाई
मिसी छूटी हुई सूखे हुए होंट
ये सूरत और आप आते हैं घर से
अमीर मीनाई
मुद्दत में शाम-ए-वस्ल हुई है मुझे नसीब
दो-चार साल तक तो इलाही सहर न हो
अमीर मीनाई
मुद्दत में शाम-ए-वस्ल हुई है मुझे नसीब
दो-चार साल तक तो इलाही सहर न हो
अमीर मीनाई
मुश्किल बहुत पड़ेगी बराबर की चोट है
आईना देखिएगा ज़रा देख-भाल के
a problem you will face, you'll find an equal there
look into the mirror with caution and with care
अमीर मीनाई
न वाइज़ हज्व कर एक दिन दुनिया से जाना है
अरे मुँह साक़ी-ए-कौसर को भी आख़िर दिखाना है
अमीर मीनाई
नावक-ए-नाज़ से मुश्किल है बचाना दिल का
दर्द उठ उठ के बताता है ठिकाना दिल का
अमीर मीनाई
नब्ज़-ए-बीमार जो ऐ रश्क-ए-मसीहा देखी
आज क्या आप ने जाती हुई दुनिया देखी
अमीर मीनाई
पहले तो मुझे कहा निकालो
फिर बोले ग़रीब है बुला लो
अमीर मीनाई