दिल में लेता है चुटकियाँ कोई
हाए इस दर्द की दवा क्या है
अख़्तर शीरानी
आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या
क्या बताऊँ कि मेरे दिल में है अरमाँ क्या क्या
अख़्तर शीरानी
ग़म अज़ीज़ों का हसीनों की जुदाई देखी
देखें दिखलाए अभी गर्दिश-ए-दौराँ क्या क्या
अख़्तर शीरानी
ग़म-ए-आक़िबत है न फ़िक्र-ए-ज़माना
पिए जा रहे हैं जिए जा रहे हैं
अख़्तर शीरानी
ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते
अख़्तर शीरानी
है क़यामत तिरे शबाब का रंग
रंग बदलेगा फिर ज़माने का
अख़्तर शीरानी
इक दिन की बात हो तो उसे भूल जाएँ हम
नाज़िल हों दिल पे रोज़ बलाएँ तो क्या करें
अख़्तर शीरानी
इक वो कि आरज़ुओं पे जीते हैं उम्र भर
इक हम कि हैं अभी से पशीमान-ए-आरज़ू!
अख़्तर शीरानी
इन वफ़ादारी के वादों को इलाही क्या हुआ
वो वफ़ाएँ करने वाले बेवफ़ा क्यूँ हो गए
अख़्तर शीरानी