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अख़्तर नज़्मी शायरी | शाही शायरी

अख़्तर नज़्मी शेर

13 शेर

आदत से लाचार है आदत नई अजीब
जिस दिन खाया पेट भर सोया नहीं ग़रीब

अख़्तर नज़्मी




अब नहीं लौट के आने वाला
घर खुला छोड़ के जाने वाला

अख़्तर नज़्मी




भारी बोझ पहाड़ सा कुछ हल्का हो जाए
जब मेरी चिंता बढ़े माँ सपने में आए

अख़्तर नज़्मी




छेड़-छाड़ करता रहा मुझ से बहुत नसीब
मैं जीता तरकीब से हारा वही ग़रीब

अख़्तर नज़्मी




जीवन भर जिस ने किए ऊँचे पेड़ तलाश
बेरी पर लटकी मिली उस चिड़िया की लाश

अख़्तर नज़्मी




खोल दिए कुछ सोच कर सब पिंजरों के द्वार
अब कोई पंछी नहीं उड़ने को तय्यार

अख़्तर नज़्मी




लौटा गेहूँ बेच कर अपने गाँव किसान
बिटिया गुड़िया सी लगी पत्नी लगी जवान

अख़्तर नज़्मी




मिरी तरफ़ से तो टूटा नहीं कोई रिश्ता
किसी ने तोड़ दिया ए'तिबार टूट गया

अख़्तर नज़्मी




नाव काग़ज़ की छोड़ दी मैं ने
अब समुंदर की ज़िम्मेदारी है

अख़्तर नज़्मी