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सिलसिला ज़ख़्म ज़ख़्म जारी है | शाही शायरी
silsila zaKHm zaKHm jari hai

ग़ज़ल

सिलसिला ज़ख़्म ज़ख़्म जारी है

अख़्तर नज़्मी

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सिलसिला ज़ख़्म ज़ख़्म जारी है
ये ज़मीं दूर तक हमारी है

इस ज़मीं से अजब तअल्लुक़ है
ज़र्रे ज़र्रे से रिश्तेदारी है

मैं बहुत कम किसी से मिलता हूँ
जिस से यारी है उस से यारी है

नाव काग़ज़ की छोड़ दी मैं ने
अब समुंदर की ज़िम्मेदारी है

बेच डाला है दिन का हर लम्हा
रात थोड़ी बहुत हमारी है

रेत के घर तो बह गए लेकिन
बारिशों का ख़ुलूस जारी है

कोई 'नज़्मी' गुज़ार कर देखे
मैं ने जो ज़िंदगी गुज़ारी है