नदिया ने मुझ से कहा मत आ मेरे पास
पानी से बुझती नहीं अंतर्मन की प्यास
अख़्तर नज़्मी
वो ज़हर देता तो सब की निगह में आ जाता
सो ये किया कि मुझे वक़्त पे दवाएँ न दीं
अख़्तर नज़्मी
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यार खिसकती जाएगी मुट्ठी में से रेत
ये तो मुमकिन ही नहीं चिड़िया चुगे न खेत
अख़्तर नज़्मी
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ज़िक्र वही आठों पहर वही कथा दिन रात
भूल सके तो भूल जा गए दिनों की बात
अख़्तर नज़्मी
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