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आबरू शाह मुबारक शायरी | शाही शायरी

आबरू शाह मुबारक शेर

71 शेर

आग़ोश सीं सजन के हमन कूँ किया कनार
मारुँगा इस रक़ीब कूँ छड़ियों से गोद गोद

आबरू शाह मुबारक




इश्क़ की सफ़ मनीं नमाज़ी सब
'आबरू' को इमाम करते हैं

आबरू शाह मुबारक




इश्क़ का तीर दिल में लागा है
दर्द जो होवता था भागा है

आबरू शाह मुबारक




इक अर्ज़ सब सीं छुप कर करनी है हम कूँ तुम सीं
राज़ी हो गर कहो तो ख़ल्वत में आ के कर जाँ

आबरू शाह मुबारक




हुआ है हिन्द के सब्ज़ों का आशिक़
न होवें 'आबरू' के क्यूँ हरे बख़्त

आबरू शाह मुबारक




हो गए हैं पैर सारे तिफ़्ल-ए-अश्क
गिर्या का जारी है अब लग सिलसिला

आबरू शाह मुबारक




ग़म सीं अहल-ए-बैत के जी तो तिरा कुढ़ता नहीं
यूँ अबस पढ़ता फिरा जो मर्सिया तो क्या हुआ

आबरू शाह मुबारक




ग़म से हम सूख जब हुए लकड़ी
दोस्ती का निहाल डाल काट

आबरू शाह मुबारक