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आबरू शाह मुबारक शायरी | शाही शायरी

आबरू शाह मुबारक शेर

71 शेर

डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ
सुब्ह कूँ खोला न कर इस ज़ुल्फ़-ए-ख़ून-आशाम कूँ

आबरू शाह मुबारक




आग़ोश सीं सजन के हमन कूँ किया कनार
मारुँगा इस रक़ीब कूँ छड़ियों से गोद गोद

आबरू शाह मुबारक




ब्यारे तिरे नयन कूँ आहू कहे जो कोई
वो आदमी नहीं है हैवान है बेचारा

आबरू शाह मुबारक




बोसे में होंट उल्टा आशिक़ का काट खाया
तेरा दहन मज़े सीं पुर है पे है कटोरा

आबरू शाह मुबारक




बोसाँ लबाँ सीं देने कहा कह के फिर गया
प्याला भरा शराब का अफ़्सोस गिर गया

आबरू शाह मुबारक




ऐ सर्द-मेहर तुझ सीं ख़ूबाँ जहाँ के काँपे
ख़ुर्शीद थरथराया और माह देख हाला

आबरू शाह मुबारक




अगर देखे तुम्हारी ज़ुल्फ़ ले डस
उलट जावे कलेजा नागनी का

आबरू शाह मुबारक




अफ़्सोस है कि बख़्त हमारा उलट गया
आता तो था पे देख के हम कूँ पलट गया

आबरू शाह मुबारक




अब दीन हुआ ज़माना-साज़ी
आफ़ाक़ तमाम दहरिया है

आबरू शाह मुबारक