हाल-ए-दिल सुन के वो आज़ुर्दा हैं शायद उन को
इस हिकायत पे शिकायत का गुमाँ गुज़रा है
अब्दुल मजीद सालिक
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ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
अहमद फ़राज़
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चुप रहो तो पूछता है ख़ैर है
लो ख़मोशी भी शिकायत हो गई
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले
तू ने रोका भी था बंदे को ख़ता से पहले
आनंद नारायण मुल्ला
इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ
ऐ संग-दिल तुझे भी ख़बर है कि क्या हुआ
अर्श सिद्दीक़ी
हमें तो अपनी तबाही की दाद भी न मिली
तिरी नवाज़िश-ए-बेजा का क्या गिला करते
अर्शी भोपाली
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कह के ये और कुछ कहा न गया
कि मुझे आप से शिकायत है
आरज़ू लखनवी
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