क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है
अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है
हफ़ीज़ जालंधरी
बद-गुमाँ आप हैं क्यूँ आप से शिकवा है किसे
जो शिकायत है हमें गर्दिश-ए-अय्याम से है
हसरत मोहानी
शिकवा-ए-ग़म तिरे हुज़ूर किया
हम ने बे-शक बड़ा क़ुसूर किया
हसरत मोहानी
रात आ कर गुज़र भी जाती है
इक हमारी सहर नहीं होती
इब्न-ए-इंशा
पा रहा है दिल मुसीबत के मज़े
आए लब पर शिकवा-ए-बेदाद क्या
इम्दाद इमाम असर
रौशनी मुझ से गुरेज़ाँ है तो शिकवा भी नहीं
मेरे ग़म-ख़ाने में कुछ ऐसा अँधेरा भी नहीं
इक़बाल अज़ीम
सर अगर सर है तो नेज़ों से शिकायत कैसी
दिल अगर दिल है तो दरिया से बड़ा होना है
इरफ़ान सिद्दीक़ी