लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है
कफ़-ए-पा को अगर चूमूँ तो मेहंदी रंग लाती है
आसी ग़ाज़ीपुरी
रंग ही से फ़रेब खाते रहें
ख़ुशबुएँ आज़माना भूल गए
अंजुम लुधियानवी
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तुम्हारे रंग फीके पड़ गए नाँ?
मिरी आँखों की वीरानी के आगे
फरीहा नक़वी
मुझ को एहसास-ए-रंग-ओ-बू न हुआ
यूँ भी अक्सर बहार आई है
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
दश्त-ए-वफ़ा में जल के न रह जाएँ अपने दिल
वो धूप है कि रंग हैं काले पड़े हुए
होश तिर्मिज़ी
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे
जमाल एहसानी
अजब बहार दिखाई लहू के छींटों ने
ख़िज़ाँ का रंग भी रंग-ए-बहार जैसा था
जुनैद हज़ीं लारी