मूजिद जो नूर का है वो मेरा चराग़ है
परवाना हूँ मैं अंजुमन-ए-काएनात का
आग़ा हज्जू शरफ़
जाने क्या महफ़िल-ए-परवाना में देखा उस ने
फिर ज़बाँ खुल न सकी शम्अ जो ख़ामोश हुई
अलीम मसरूर
सब इक चराग़ के परवाने होना चाहते हैं
अजीब लोग हैं दीवाने होना चाहते हैं
असअ'द बदायुनी
शम्अ' बुझ कर रह गई परवाना जल कर रह गया
यादगार-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ इक दाग़ दिल पर रह गया
अज़ीज़ लखनवी
तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा
शम्अ होगी जहाँ परवाना वहाँ पहुँचेगा
बहादुर शाह ज़फ़र
परवाने की तपिश ने ख़ुदा जाने कान में
क्या कह दिया कि शम्अ के सर से धुआँ उठा
इस्माइल मेरठी
परवाने आ ही जाएँगे खिंच कर ब-जब्र-ए-इश्क़
महफ़िल में सिर्फ़ शम्अ जलाने की देर है
माहिर-उल क़ादरी