ये अपने दिल की लगी को बुझाने आते हैं
पराई आग में जलते नहीं हैं परवाने
they come to extinguish the fire in their heart
in senseless immolation the moths do not take part
मख़मूर सईदी
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परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका
गुज़री है रात शम्अ पे क्या देखते चलें
शाद अज़ीमाबादी
ख़ाक कर देवे जला कर पहले फिर टिसवे बहाए
शम्अ मज्लिस में बड़ी दिल-सोज़ परवाने की है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मत करो शम्अ कूँ बदनाम जलाती वो नहीं
आप सीं शौक़ पतंगों को है जल जाने का
cast not blame upon the flame it doesn’t burn to sear
the moths are
सिराज औरंगाबादी