किसे ख़बर वो मोहब्बत थी या रक़ाबत थी
बहुत से लोग तुझे देख कर हमारे हुए
अहमद फ़राज़
ये भी इक बात है अदावत की
रोज़ा रक्खा जो हम ने दावत की
अमीर मीनाई
अपने बेगाने से अब मुझ को शिकायत न रही
दुश्मनी कर के मिरे दोस्त ने मारा मुझ को
अरशद अली ख़ान क़लक़
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
bear enmity with all your might, but this we should decide
if ever we be friends again, we are not mortified
बशीर बद्र
दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएँगे
बशीर बद्र
मोहब्बत अदावत वफ़ा बे-रुख़ी
किराए के घर थे बदलते रहे
बशीर बद्र
वफ़ा पर दग़ा सुल्ह में दुश्मनी है
भलाई का हरगिज़ ज़माना नहीं है
दत्तात्रिया कैफ़ी