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तिलोकचंद महरूम शायरी | शाही शायरी

तिलोकचंद महरूम शेर

19 शेर

ऐ हम-नफ़स न पूछ जवानी का माजरा
मौज-ए-नसीम थी इधर आई उधर गई

तिलोकचंद महरूम




अक़्ल को क्यूँ बताएँ इश्क़ का राज़
ग़ैर को राज़-दाँ नहीं करते

तिलोकचंद महरूम




बाद-ए-तर्क-ए-आरज़ू बैठा हूँ कैसा मुतमइन
हो गई आसाँ हर इक मुश्किल ब-आसानी मिरी

तिलोकचंद महरूम




ब-ज़ाहिर गर्म है बाज़ार-ए-उल्फ़त
मगर जिंस-ए-वफ़ा कम हो गई है

तिलोकचंद महरूम




बुरा हो उल्फ़त-ए-ख़ूबाँ का हम-नशीं हम तो
शबाब ही में बुरा अपना हाल कर बैठे

तिलोकचंद महरूम




दाम-ए-ग़म-ए-हयात में उलझा गई उमीद
हम ये समझ रहे थे कि एहसान कर गई

तिलोकचंद महरूम




दिल के तालिब नज़र आते हैं हसीं हर जानिब
उस के लाखों हैं ख़रीदार कि माल अच्छा है

तिलोकचंद महरूम




दिल में कहते हैं कि ऐ काश न आए होते
उन के आने से जो बीमार का हाल अच्छा है

तिलोकचंद महरूम




फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
इन मुश्किलों से अहद-बरआई न हो सकी

तिलोकचंद महरूम