अभी इस राह से कोई गया है
कहे देती है शोख़ी नक़्श-ए-पा की
मीर तस्कीन देहलवी
इतनी न कीजे जाने की जल्दी शब-ए-विसाल
देखे हैं मैं ने काम बिगड़ते शिताब में
मीर तस्कीन देहलवी
जिस वक़्त नज़र पड़ती है उस शोख़ पे 'तस्कीं'
क्या कहिए कि जी में मेरे क्या क्या नहीं होता
मीर तस्कीन देहलवी
करता हूँ तेरी ज़ुल्फ़ से दिल का मुबादला
हर-चंद जानता हूँ ये सौदा बुरा नहीं
मीर तस्कीन देहलवी
ख़ूब-सूरत न हो कोई तो न हो बदनामी
सच तो ये है कि बुरा होता है अच्छा होना
मीर तस्कीन देहलवी
पूछे जो तुझ से कोई कि 'तस्कीं' से क्यूँ मिला
कह दीजो हाल देख के रहम आ गया मुझे
मीर तस्कीन देहलवी
शब-ए-विसाल में सुनना पड़ा फ़साना-ए-ग़ैर
समझते काश वो अपना न राज़दार मुझे
मीर तस्कीन देहलवी
'तस्कीं' ने नाम ले के तिरा वक़्त-ए-मर्ग आह
क्या जाने क्या कहा था किसी ने सुना नहीं
मीर तस्कीन देहलवी
'तस्कीन' करूँ क्या दिल-ए-मुज़्तर का इलाज अब
कम-बख़्त को मर कर भी तो आराम न आया
मीर तस्कीन देहलवी