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उस कू मैं हुए हम वो लब-ए-बाम न आया | शाही शायरी
us ku main hue hum wo lab-e-baam na aaya

ग़ज़ल

उस कू मैं हुए हम वो लब-ए-बाम न आया

मीर तस्कीन देहलवी

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उस कू मैं हुए हम वो लब-ए-बाम न आया
ऐ जज़्बा-ए-दिल तू भी किसी काम न आया

था मेरी तरह ग़ैर को भी दावा-ए-उल्फ़त
नासेह तू उसे देने को इल्ज़ाम न आया

बे-बाल-ओ-परी खोती है तौक़ीर-ए-असीरी
सय्याद यहाँ ले के कभी दाम न आया

इस नाज़ के सदक़े हूँ तिरे मैं कि उदू से
सौ बार सुना है पे मिरा नाम न आया

क्या जानिए किस तरह दिया तू ने जवाब आह
क़ासिद की ज़बाँ पर तिरा पैग़ाम न आया

'तस्कीन' करूँ क्या दिल-ए-मुज़्तर का इलाज अब
कम-बख़्त को मर कर भी तो आराम न आया