दुखों के रूप बहुत और सुखों के ख़्वाब बहुत
तिरा करम है बहुत पर मिरे अज़ाब बहुत
तनवीर अंजुम
दूर तक ये रास्ते ख़ामोश हैं
दूर तक हम ख़ुद को सुनते जाएँगे
तनवीर अंजुम
फ़रेब-ए-क़ुर्ब-ए-यार हो कि हसरत-ए-सुपुर्दगी
किसी सबब से दिल मुझे ये बे-क़रार चाहिए
तनवीर अंजुम
ग़म-ए-ज़माना जब न हो ग़म-ए-वजूद ढूँड लूँ
कि इक ज़मीन-ए-जाँ जो है वो दाग़दार चाहिए
तनवीर अंजुम
इस ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे मुझे नाज़ बहुत है
वो शख़्स मिरी जाँ का तलबगार हुआ है
तनवीर अंजुम
लम्हा-ए-इमकान को पहलू बदलते देखना
आतिश-ए-बे-रंग में ख़ुद को पिघलते देखना
तनवीर अंजुम
मुझे अज़ीज़ है बे-एहतियाती-ए-सादा
न शौक़ है न हुनर उस को आज़माने का
तनवीर अंजुम
शहरों के सारे जंगल गुंजान हो गए हैं
फिर लोग मेरे अंदर सुनसान हो गए हैं
तनवीर अंजुम
टूटी है ये कश्ती तो मिरे साथ सफ़र को
वो जान-ए-मसाफ़त मिरा तय्यार हुआ है
तनवीर अंजुम