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कभी वो मिस्ल-ए-गुल मुझे मिसाल-ए-ख़ार चाहिए | शाही शायरी
kabhi wo misl-e-gul mujhe misal-e-Khaar chahiye

ग़ज़ल

कभी वो मिस्ल-ए-गुल मुझे मिसाल-ए-ख़ार चाहिए

तनवीर अंजुम

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कभी वो मिस्ल-ए-गुल मुझे मिसाल-ए-ख़ार चाहिए
कभी मिज़ाज-ए-मेहरबाँ वफ़ा-शिआर चाहिए

जबीन-ए-ख़ुद-पसंद को सज़ा-ए-दर्द याद हो
सर-ए-जुनून-कोश में ख़याल-ए-दार चाहिए

फ़रेब-ए-क़ुर्ब-ए-यार हो कि हसरत-ए-सुपुर्दगी
किसी सबब से दिल मुझे ये बे-क़रार चाहिए

ग़म-ए-ज़माना जब न हो ग़म-ए-वजूद ढूँड लूँ
कि इक ज़मीन-ए-जाँ जो है वो दाग़दार चाहिए

वो आज़माइश-ए-जुनूँ वो इम्तिहान-ए-बे-ख़ुदी
वो सोहबत-ए-तबाह-कुन फिर एक बार चाहिए