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लम्हा-ए-इमकान को पहलू बदलते देखना | शाही शायरी
lamha-e-imkan ko pahlu badalte dekhna

ग़ज़ल

लम्हा-ए-इमकान को पहलू बदलते देखना

तनवीर अंजुम

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लम्हा-ए-इमकान को पहलू बदलते देखना
आतिश-ए-बे-रंग में ख़ुद को पिघलते देखना

इश्क़ में ये फ़ैसला है इस दिल-ए-सौदाई का
ख़ुद को गिरते देखना उस को सँभलते देखना

इज़्तिराब-ए-दर्द में हद से गुज़र जाना नहीं
हुस्न-ए-शाम-ए-आरज़ू का रूप ढलते देखना

उम्र-ए-बे-अंदाज़ को काफ़ी सहारा हो गया
ख़्वाब-ए-ख़ुश-अंदाज़ उस के साथ चलते देखना

रेग-ए-बे-तदबीर में पर्वाज़ महव-ए-ख़्वाब है
इक हवा-ए-तेज़ में उस को मचलते देखना

आसमाँ ऐ आसमाँ क्या मेरी क़िस्मत में नहीं
उस निगह में ख़्वाहिशों की आग जलते देखना