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शरफ़ मुजद्दिदी शायरी | शाही शायरी

शरफ़ मुजद्दिदी शेर

22 शेर

आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत
नुक़्ता-ए-वहम हुआ गुम्बद-ए-गर्दूं मुझ को

शरफ़ मुजद्दिदी




अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
जाम चलते हैं ख़ानक़ाहों में

शरफ़ मुजद्दिदी




अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
सारी उम्मत के हैं पोतों से नवासे बढ़ कर

शरफ़ मुजद्दिदी




दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी
हर जा है दोस्त और नहीं मिलती है जा-ए-दोस्त

शरफ़ मुजद्दिदी




दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
खींच लाए शराब-ख़ाने से

शरफ़ मुजद्दिदी




दुख़्त-ए-रज़ ज़ाहिद से बोली मुझ से घबराते हो क्यूँ
क्या तुम्हीं हो पाक-दामन पारसा मैं भी तो हूँ

शरफ़ मुजद्दिदी




एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
ये नया कूचा-ए-क़ातिल में तमाशा देखा

शरफ़ मुजद्दिदी




हैरत में हूँ इलाही क्यूँ-कर ये ख़त्म होगा
कोताह रोज़-ए-महशर क़िस्सा दराज़ मेरा

शरफ़ मुजद्दिदी




हज़रत-ए-नासेह भी मय पीने लगे
अब मुझे समझाने वाला कौन था

शरफ़ मुजद्दिदी