दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
खींच लाए शराब-ख़ाने से
शरफ़ मुजद्दिदी
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दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी
हर जा है दोस्त और नहीं मिलती है जा-ए-दोस्त
शरफ़ मुजद्दिदी
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अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
सारी उम्मत के हैं पोतों से नवासे बढ़ कर
शरफ़ मुजद्दिदी
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अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
जाम चलते हैं ख़ानक़ाहों में
शरफ़ मुजद्दिदी
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