ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत न हो मगर
पहले सा जोश पहले सी शिद्दत नहीं रही
सलमान अख़्तर
अपनी आदत कि सब से सब कह दें
शहर का है मिज़ाज सन्नाटा
सलमान अख़्तर
बुत समझते थे जिस को सारे लोग
वो मिरे वास्ते ख़ुदा सा था
सलमान अख़्तर
चाँद सूरज की तरह तुम भी हो क़ुदरत का खेल
जैसे हो वैसे रहो बनना बिगड़ना छोड़ो
सलमान अख़्तर
देखे जो मेरी नेकी को शक की निगाह से
वो आदमी भी तो मिरे अंदर है क्या करूँ
सलमान अख़्तर
गुफ़्तुगू तीर सी लगी दिल में
अब है शायद इलाज सन्नाटा
सलमान अख़्तर
हम जो पहले कहीं मिले होते
और ही अपने सिलसिले होते
सलमान अख़्तर
हज़ार चाहें मगर छूट ही नहीं सकती
बड़ी अजीब है ये मय-कशी की आदत भी
सलमान अख़्तर
इक वही शख़्स मुझ को याद रहा
जिस को समझा था भूल जाऊँगा
सलमान अख़्तर