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हम जो पहले कहीं मिले होते | शाही शायरी
hum jo pahle kahin mile hote

ग़ज़ल

हम जो पहले कहीं मिले होते

सलमान अख़्तर

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हम जो पहले कहीं मिले होते
और ही अपने सिलसिले होते

फिर हर इक बात ठीक से होती
फिर न उलझन न फ़ासले होते

फिर न तन्हाई रात को डसती
फिर न क़िस्मत से ये गिले होते

फिर न लगता ये शहर इक सहरा
फिर न गुम दिल के क़ाफ़िले होते

फिर ग़ज़ल होती सब ज़बानों पर
फिर किसी के न लब सिले होते

फिर हर इक लम्हा गुनगुना उठता
फिर हर इक सम्त गुल खिले होते