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दाइम सराब इक मिरे अंदर है क्या करूँ | शाही शायरी
daim sarab ek mere andar hai kya karun

ग़ज़ल

दाइम सराब इक मिरे अंदर है क्या करूँ

सलमान अख़्तर

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दाइम सराब इक मिरे अंदर है क्या करूँ
सहरा मिरी नज़र में समुंदर है क्या करूँ

देखे जो मेरी नेकी को शक की निगाह से
वो आदमी भी तो मिरे अंदर है क्या करूँ

यक-गूना बे-ख़ुदी को ही अब ढूँढता है दिल
ग़म और ख़ुशी का बोझ बराबर है क्या करूँ

अच्छा तो है कि सब से मिलूँ एक ही तरह
लेकिन वो और लोगों से बेहतर है क्या करूँ

मिलते हैं यूँ तो लोग ब-ज़ाहिर बहुत गले
हर आस्तीन में कोई ख़ंजर है क्या करूँ