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क़ैसर-उल जाफ़री शायरी | शाही शायरी

क़ैसर-उल जाफ़री शेर

27 शेर

आज बरसों में तो क़िस्मत से मुलाक़ात हुई
आप मुँह फेर के बैठे हैं ये क्या बात हुई

क़ैसर-उल जाफ़री




बस्ती में है वो सन्नाटा जंगल मात लगे
शाम ढले भी घर पहुँचूँ तो आधी रात लगे

क़ैसर-उल जाफ़री




दस्तक में कोई दर्द की ख़ुश्बू ज़रूर थी
दरवाज़ा खोलने के लिए घर का घर उठा

क़ैसर-उल जाफ़री




दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जाएँगे ऐसा लगता है

क़ैसर-उल जाफ़री




फ़न वो जुगनू है जो उड़ता है हवा में 'क़ैसर'
बंद कर लोगे जो मुट्ठी में तो मर जाएगा

क़ैसर-उल जाफ़री




घर लौट के रोएँगे माँ बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में

क़ैसर-उल जाफ़री




हर शख़्स है इश्तिहार अपना
हर चेहरा किताब हो गया है

क़ैसर-उल जाफ़री




हवा ख़फ़ा थी मगर इतनी संग-दिल भी न थी
हमीं को शम्अ जलाने का हौसला न हुआ

क़ैसर-उल जाफ़री




जिस दिन से बने हो तुम मसीहा
हाल और ख़राब हो गया है

क़ैसर-उल जाफ़री