EN اردو
बस्ती में है वो सन्नाटा जंगल मात लगे | शाही शायरी
basti mein hai wo sannaTa jangal mat lage

ग़ज़ल

बस्ती में है वो सन्नाटा जंगल मात लगे

क़ैसर-उल जाफ़री

;

बस्ती में है वो सन्नाटा जंगल मात लगे
शाम ढले भी घर पहुँचूँ तो आधी रात लगे

मुट्ठी बंद किए बैठा हूँ कोई देख न ले
चाँद पकड़ने घर से निकला जुगनू हात लगे

तुम से बिछड़े दिल को उजड़े बरसों बीत गए
आँखों का ये हाल है अब तक कल की बात लगे

तुम ने इतने तीर चलाए सब ख़ामोश रहे
हम तड़पे तो दुनिया भर के इल्ज़ामात लगे

ख़त में दिल की बातें लिखना अच्छी बात नहीं
घर में इतने लोग हैं जाने किस के हात लगे

सावन एक महीने 'क़ैसर' आँसू जीवन भर
इन आँखों के आगे बादल बे-औक़ात लगे