अंगड़ाई दोनों हाथ उठा कर जो उस ने ली
पर लग गए परों ने परी को उड़ा दिया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
अगर हयात है देखेंगे एक दिन दीदार
कि माह-ए-ईद भी आख़िर है इन महीनों में
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया
बलाओं से मिल कर बला हो गया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
अज़ाँ दी काबा में नाक़ूस दैर में फूँका
कहाँ कहाँ तुझे आशिक़ तिरा पुकार आया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
अज़ाँ दी काबे में नाक़ूस दैर में फूँका
कहाँ कहाँ तुझे आशिक़ तिरा पुकार आया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
बाद-ए-फ़ना भी है मरज़-ए-इश्क़ का असर
देखो कि रंग ज़र्द है मेरे ग़ुबार का
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
बे-बुलाए हुए जाना मुझे मंज़ूर नहीं
उन का वो तौर नहीं मेरा ये दस्तूर नहीं
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
छुप सका दम भर न राज़-ए-दिल फ़िराक़-ए-यार में
वो निहाँ जिस दम हुआ सब आश्कारा हो गया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़