असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया
बलाओं से मिल कर बला हो गया
जुनूँ ले के हमराह आई बहार
नए सिर से फिर वल-वला हो गया
दिया ग़ैर ने भी दिल आख़िर उसे
मुझे देख कर मन-चला हो गया
समाई दिल-ए-तंग की देखिए
कि आलम में साबित ख़ला हो गया
तअल्ली ज़मीं से जो नालों ने की
फ़लक पर अयाँ ज़लज़ला हो गया
हुआ क़त्ल बे-जुर्म मैं जा के 'बर्क़'
वो कूचा मुझे कर्बला हो गया
ग़ज़ल
असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़