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ख़ालिदा उज़्मा शायरी | शाही शायरी

ख़ालिदा उज़्मा शेर

8 शेर

बसी है सूखे गुलाबों की बात साँसों में
कोई ख़याल किसी याद के हिसार में है

ख़ालिदा उज़्मा




चले आते हैं बे-मौसम की बारिश की तरह आँसू
बसा-औक़ात रोने का सबब कुछ भी नहीं होता

ख़ालिदा उज़्मा




हक़ीक़तें तो अटल हैं बदल नहीं सकतीं
मगर किसी की तसल्ली से हौसला हुआ है

ख़ालिदा उज़्मा




इधर उधर के सुनाए हज़ार अफ़्साने
दिलों की बात सुनाने का हौसला न हुआ

ख़ालिदा उज़्मा




की मिरे ब'अद क़त्ल से तौबा
आख़िरी तीर था कमान में क्या

ख़ालिदा उज़्मा




वो तपिश है कि जल उठे साए
धूप रक्खी थी साएबान में क्या

ख़ालिदा उज़्मा




ये क्या ख़लिश है कि लौ दे रही है जज़्बों को
न जाने कौन सा शोला मेरे शरार में है

ख़ालिदा उज़्मा




ज़ीस्त और मौत का आख़िर ये फ़साना क्या है
उम्र क्यूँ हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं दी जा सकती

ख़ालिदा उज़्मा