वो जिस का साथ निभाने का हौसला न हुआ
बिछड़ गया तो भुलाने का हौसला न हुआ
इधर उधर के सुनाए हज़ार अफ़्साने
दिलों की बात सुनाने का हौसला न हुआ
ये और बात कि बा-हौसला हूँ मैं फिर भी
नए चराग़ जलाने का हौसला न हुआ
ख़लीज कितने ज़मानों की कर गया पैदा
वो इक क़दम कि उठाने का हौसला न हुआ
किताब-ए-ज़ेहन का कोई वरक़ भी सादा नहीं
लिखे हुरूफ़ मिटाने का हौसला न हुआ
गुज़र गई थी शब-ए-हिज्र हिज्र में 'उज़मा'
चराग़ फिर भी बुझाने का हौसला न हुआ
ग़ज़ल
वो जिस का साथ निभाने का हौसला न हुआ
ख़ालिदा उज़्मा