सर छुपाने के लिए छत नहीं दी जा सकती
हर किसी को ये सहूलत नहीं दी जा सकती
साँस लेने के लिए सब को मयस्सर है हवा
इस से बढ़ कर तो रिआयत नहीं दी जा सकती
तुम को रास आए न आए मिरी बस्ती की फ़ज़ा
याँ किसी जाँ की ज़मानत नहीं दी जा सकती
एक मुद्दत के शब ओ रोज़ लहू होते हैं
तश्त में रख के क़यादत नहीं दी जा सकती
ज़ीस्त और मौत का आख़िर ये फ़साना क्या है
उम्र क्यूँ हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं दी जा सकती
इन दरीचों से कोई मौजा-ए-ख़ुश-कुन आए
राहत-ए-जाँ ये इजाज़त नहीं दी जा सकती
सोज़-ए-दिल तोहफ़ा-ए-क़ुदरत है वगरना 'उज़मा'
बर्फ़ को नर्म हरारत नहीं दी जा सकती
ग़ज़ल
सर छुपाने के लिए छत नहीं दी जा सकती
ख़ालिदा उज़्मा