बात ये है कि सभी भाई मिरे दुश्मन हैं
मसअला ये है कि मैं यूसुफ़-ए-सानी भी नहीं
ख़ालिद कर्रार
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कलीसा मौलवी राहिब पुजारी
कलस मीनार बुत मेहराब सहरा
ख़ालिद कर्रार
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कोई तो आए सुनाए नवेद-ए-ताज़ा मुझे
उठो कि हश्र से पहले हिसाब होने लगा
ख़ालिद कर्रार
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फिर इस के बाद मिरी रात बे-मिसाल हुई
उधर वो शोला-बदन था इधर मैं पानी था
ख़ालिद कर्रार
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सच तो ये है कि मिरे पास ही दिरहम कम हैं
वर्ना इस शहर में इस दर्जा गिरानी भी नहीं
ख़ालिद कर्रार
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