बला की प्यास थी हद्द-ए-नज़र में पानी था
कि आज ख़्वाब में सहरा था घर में पानी था
फिर इस के बा'द मिरी रात बे-मिसाल हुई
उधर वो शो'ला-बदन था इधर में पानी था
न जाने ख़ाक के मिज़्गाँ पे आबशार था क्या
मिरा क़ुसूर था मेरे शरर में पानी था
तमाम उम्र ये उक़्दा न वा हुआ मुझ पर
कि हाथ में था या चश्म-ए-ख़िज़र में पानी था
अजीब दश्त-ए-तमन्ना से था गुज़र 'ख़ालिद'
बदन में रेग-ए-रवाँ थी सफ़र में पानी था

ग़ज़ल
बला की प्यास थी हद्द-ए-नज़र में पानी था
ख़ालिद कर्रार