EN اردو
इशरत ज़फ़र शायरी | शाही शायरी

इशरत ज़फ़र शेर

8 शेर

चार जानिब चीख़ती सम्तों का शोर
हाँपते साए थकन और इन्हितात

इशरत ज़फ़र




चश्मा-ए-आब-ए-रवाँ है जो सराब-ए-जाँ में
उस की हर लहर में रक़्साँ है तरन्नुम तेरा

इशरत ज़फ़र




जिधर भी जाता है वो शोला-ए-बहार-सरिश्त
दुआएँ देता है अम्बोह-ए-कुश्तगाँ उस को

इशरत ज़फ़र




मिरे अक़ब में है आवाज़ा-ए-नुमू की गूँज
है दश्त-ए-जाँ का सफ़र कामयाब अपनी जगह

इशरत ज़फ़र




मिरे कमरे की दीवारों में ऐसे आइने भी हैं
कि जिन के पास हर शख़्स अपना चेहरा छोड़ जाता है

इशरत ज़फ़र




सब मिरे दिल पे करम उस निगह-ए-नाज़ का है
बे-क़रारी है मिरी और न सुकूँ है मेरा

इशरत ज़फ़र




वो इक लम्हा जो तेरे क़ुर्ब की ख़ुशबू से है रौशन
अब इस लम्हे को पाबंद-ए-सलासिल चाहता हूँ मैं

इशरत ज़फ़र




वो मेरे राज़ मुझ में चाहता है मुन्कशिफ़ करना
मुझे मेरे घने साए में तन्हा छोड़ जाता है

इशरत ज़फ़र