हर रग-ए-ख़ार की तहवील में ख़ूँ है मेरा
बे-कराँ दश्त दबिस्तान-ए-जुनूँ है मेरा
नक़्श-ए-मौहूम है सब वुसअत-ए-अर्ज़-ओ-अफ़्लाक
मेरे शहपर के तले सैद-ए-ज़बूँ है मेरा
शाख़ें तलवार की सूरत हैं गुल-ओ-बर्ग हैं संग
दिल का ये नख़्ल गिरफ़्तार-ए-फ़ुसूँ है मेरा
ज़ख़्म क्या है किसी शमशीर-ए-निगह का एजाज़
अश्क क्या है समर-ए-फ़स्ल-ए-दरूँ है मेरा
हिज्र का चाँद दहकता हुआ अँगारा सही
मगर इस से भी कहीं शोला फ़ुज़ूँ है मेरा
सब मिरे दिल पे करम उस निगह-ए-नाज़ का है
बे-क़रारी है मिरी और न सुकूँ है मेरा
ग़म का ज़हराब रग ओ पय में जो उतरा 'इशरत'
तब ये मालूम हुआ मुझ को वो क्यूँ है मेरा
ग़ज़ल
हर रग-ए-ख़ार की तहवील में ख़ूँ है मेरा
इशरत ज़फ़र