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ये किस ने कह दिया तुझ से कि साहिल चाहता हूँ मैं | शाही शायरी
ye kis ne kah diya tujhse ki sahil chahta hun main

ग़ज़ल

ये किस ने कह दिया तुझ से कि साहिल चाहता हूँ मैं

इशरत ज़फ़र

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ये किस ने कह दिया तुझ से कि साहिल चाहता हूँ मैं
समुंदर हूँ समुंदर को मुक़ाबिल चाहता हूँ मैं

वो इक लम्हा जो तेरे क़ुर्ब की ख़ुशबू से है रौशन
अब इस लम्हे को पाबंद-ए-सलासिल चाहता हूँ मैं

वो चिंगारी जो है मश्शाक़ फ़न्न-ए-शोला-साज़ी में
उसे रौशन तह-ए-ख़ाकिस्तर-ए-दिल चाहता हूँ मैं

बहुत बे-ज़ार है उम्र-ए-रवाँ सहरा-नवर्दी से
पए-कार-ए-जुनूँ ताज़ा मशाग़िल चाहता हूँ मैं

न ये ख़्वाहिश कि वो मिट्टी में मेरी जज़्ब हो जाए
न ख़ुद को दास्ताँ में उस की शामिल चाहता हूँ मैं

अजब बिस्मिल है 'इशरत' अपने क़ातिल से ये कहता है
सर-ए-महफ़िल तुझे ऐ जान-ए-महफ़िल चाहता हूँ मैं