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इज्तिबा रिज़वी शायरी | शाही शायरी

इज्तिबा रिज़वी शेर

5 शेर

अफ़्सुर्दगी भी हुस्न है ताबिंदगी भी हुस्न
हम को ख़िज़ाँ ने तुम को सँवारा बहार ने

इज्तिबा रिज़वी




चुराने को चुरा लाया मैं जल्वे रू-ए-रौशन से
मगर अब बिजलियाँ लिपटी हुई हैं दिल के दामन से

इज्तिबा रिज़वी




ख़िरद को ख़ाना-ए-दिल का निगह-बाँ कर दिया हम ने
ये घर आबाद होता इस को वीराँ कर दिया हम ने

इज्तिबा रिज़वी




मिरे साज़-ए-नफ़स की ख़ामुशी पर रूह कहती है
न आई मुझ को नींद और सो गया अफ़्साना-ख़्वाँ मेरा

इज्तिबा रिज़वी




ज़बाँ से दिल का फ़साना अदा किया न गया
ये तर्जुमाँ तो बनी थी मगर बना न गया

इज्तिबा रिज़वी