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हुमैरा रहमान शायरी | शाही शायरी

हुमैरा रहमान शेर

9 शेर

अजब मज़ाक़ उस का था कि सर से पाँव तक मुझे
वफ़ाओं से भिगो दिया नदामतों की सोच में

हुमैरा रहमान




गुज़शता मौसमों में बुझ गए हैं रंग फूलों के
दरीचा अब भी मेरा रौशनी के ज़ावियों पर है

हुमैरा रहमान




हम और तुम जो बदल गए तो इतनी हैरत क्या
अक्स बदलते रहते हैं आईनों की ख़ातिर

हुमैरा रहमान




हवा की तेज़-गामियों का इंकिशाफ़ क्या करें
जो दोश पर लिए हो उस के बर-ख़िलाफ़ क्या करें

हुमैरा रहमान




कंकर फेंक रहे हैं ये अंदाज़ा करने को
ठहरा पानी कितनी 'हुमैरा' हलचल रखता है

हुमैरा रहमान




लोगो! हम परदेसी हो कर जाने क्या क्या खो बैठे
अपने कूचे भी लगते हैं बेगाने बेगाने से

हुमैरा रहमान




मिरी अलमारियों में क़ीमती सामान काफ़ी था
मगर अच्छा लगा उस से कई फ़रमाइशें करना

हुमैरा रहमान




रौशन-दान से धूप का टुकड़ा आ कर मेरे पास गिरा
और फिर सूरज ने कोशिश की मुझ से आँख मिलाने की

हुमैरा रहमान




वो लम्हा जब मिरे बच्चे ने माँ पुकारा मुझे
मैं एक शाख़ से कितना घना दरख़्त हुई

हुमैरा रहमान