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जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से | शाही शायरी
jaise koi ziddi bachcha kab bahle bahlane se

ग़ज़ल

जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से

हुमैरा रहमान

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जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से
ऐसे हम दुनिया से छुप कर देखें ख़्वाब सुहाने से

सब कुछ समझे लेकिन इतनी बात नहीं पहचाने लोग
मिल जाता है चैन किसी को एक तुम्हारे आने से

हम तो ग़म की एक इक शिद्दत बाहर आने से रोकें
उस की आँखें बाज़ न आईं अंगारे बरसाने से

लोगो! हम परदेसी हो कर जाने क्या क्या खो बैठे
अपने कूचे भी लगते हैं बेगाने बेगाने से

देखो दोस्त! तुम्हारा मक़्सद शायद हमदर्दी ही हो
मेरा पैकर टूट गिरेगा वो बातें दोहराने से

घर का सन्नाटा तो 'हुमैरा' हंगामों की नज़्र हुआ
दिल की वीरानी वैसी की वैसी एक ज़माने से