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हिमायत अली शाएर शायरी | शाही शायरी

हिमायत अली शाएर शेर

25 शेर

अब न कोई मंज़िल है और न रहगुज़र कोई
जाने क़ाफ़िला भटके अब कहाँ कहाँ यारो

हिमायत अली शाएर




अपने किसी अमल पे नदामत नहीं मुझे
था नेक-दिल बहुत जो गुनहगार मुझ में था

हिमायत अली शाएर




बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है
मिरे अलाव में अब राख के सिवा क्या है

हिमायत अली शाएर




हम भी हैं किसी कहफ़ के असहाब के मानिंद
ऐसा न हो जब आँख खुले वक़्त गुज़र जाए

हिमायत अली शाएर




हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग
देखते ही देखते कितने बदल जाते हैं लोग

हिमायत अली शाएर




हर तरफ़ इक मुहीब सन्नाटा
दिल धड़कता तो है मगर ख़ामोश

हिमायत अली शाएर




ईमाँ भी लाज रख न सका मेरे झूट की
अपने ख़ुदा पे कितना मुझे ए'तिमाद था

हिमायत अली शाएर




इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और
जब आग हो नम-ख़ुर्दा तो उठता है धुआँ और

हिमायत अली शाएर




इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए
चमकी जो ज़रा धूप तो जलने लगे साए

हिमायत अली शाएर