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बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है | शाही शायरी
badan pe pairahan-e-KHak ke siwa kya hai

ग़ज़ल

बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है

हिमायत अली शाएर

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बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है
मिरे अलाव में अब राख के सिवा क्या है

ये शहर-ए-सज्दा-गुज़ाराँ दयार-ए-कम-नज़राँ
यतीम-ख़ाना-ए-इदराक के सिवा क्या है

तमाम गुम्बद-ओ-मीनार-ओ-मिम्बर-ओ-मेहराब
फ़क़ीह-ए-शहर की इम्लाक के सिवा क्या है

खुले सरों का मुक़द्दर ब-ए-फ़ैज़-ए-जहल-ए-ख़िरद
फ़रेब-ए-साया-ए-अफ़्लाक के सिवा क्या है

तमाम उम्र का हासिल ब-फ़ज़्ल-ए-रब्ब-ए-करीम
मता-ए-दीदा-ए-नमनाक के सिवा क्या है

ये मेरा दावा-ए-ख़ुद-बीनी-ओ-जहाँ-बीनी
मिरी जिहालत-ए-सफ़्फ़ाक के सिवा क्या है

जहाँ-ए-फ़िक्र-ओ-अमल में ये मेरा ज़ोम-ए-वजूद
फ़क़त नुमाइश-ए-पोशाक के सिवा क्या है