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मैं सो रहा था और कोई बेदार मुझ में था | शाही शायरी
main so raha tha aur koi bedar mujh mein tha

ग़ज़ल

मैं सो रहा था और कोई बेदार मुझ में था

हिमायत अली शाएर

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मैं सो रहा था और कोई बेदार मुझ में था
शायद अभी तलक मिरा पिंदार मुझ में था

वो कज-अदा सही मिरी पहचान भी था वो
अपने नशे में मस्त जो फ़नकार मुझ में था

मैं ख़ुद को भूलता भी तो किस तरह भूलता
इक शख़्स था कि आइना-बरदार मुझ में था

शायद इसी सबब से तवाज़ुन सा मुझ में है
इक मोहतसिब लिए हुए तलवार मुझ में था

अपने किसी अमल पे नदामत नहीं मुझे
था नेक-दिल बहुत जो गुनहगार मुझ में था