आज न हम से पूछिए कैसा कमाल हो गया
हिज्र के ख़ौफ़ में रहे और विसाल हो गया
हिलाल फ़रीद
आज फिर दब गईं दर्द की सिसकियाँ
आज फिर गूँजता क़हक़हा रह गया
हिलाल फ़रीद
अपने दुख में रोना-धोना आप ही आया
ग़ैर के दुख में ख़ुद को दुखाना इश्क़ में सीखा
हिलाल फ़रीद
बाहर जो नहीं था तो कोई बात नहीं थी
एहसास-ए-नदामत मगर अंदर भी नहीं था
हिलाल फ़रीद
हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला
समझे थे जिसे पत्थर वो शख़्स ख़ुदा निकला
हिलाल फ़रीद
इस अक़्ल की मारी नगरी में कभी पानी आग नहीं बनता
यहाँ इश्क़ भी लोग नहीं करते यहाँ कोई कमाल नहीं होता
हिलाल फ़रीद
जाम-ए-इश्क़ पी चुके ज़िंदगी भी जी चुके
अब 'हिलाल' घर चलो अब तो शाम हो गई
हिलाल फ़रीद
जब वक़्त पड़ा था तो जो कुछ हम ने किया था
समझे थे वही यार हमारा भी करेगा
हिलाल फ़रीद
मिरी दास्ताँ भी अजीब है वो क़दम क़दम मिरे साथ था
जिसे राज़-ए-दिल न बता सका जिसे दाग़-ए-दिल न दिखा सका
हिलाल फ़रीद