न ही बिजलियाँ न ही बारिशें न ही दुश्मनों की वो साज़िशें
भला क्या सबब है बता ज़रा जो तू आज भी नहीं आ सका
हिलाल फ़रीद
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पानी पे बनते अक्स की मानिंद हूँ मगर
आँखों में कोई भर ले तो मिटता नहीं हूँ मैं
हिलाल फ़रीद
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पहले भी जहाँ पर बिछड़े थे वही मंज़िल थी इस बार मगर
वो भी बे-लौस नहीं लौटा हम भी बे-ताब नहीं आए
हिलाल फ़रीद
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उस अजनबी से वास्ता ज़रूर था कोई
वो जब कभी मिला तो बस मिरा लगा मुझे
हिलाल फ़रीद
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