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आँखों में वो ख़्वाब नहीं बसते पहला सा वो हाल नहीं होता | शाही शायरी
aankhon mein wo KHwab nahin baste pahla sa wo haal nahin hota

ग़ज़ल

आँखों में वो ख़्वाब नहीं बसते पहला सा वो हाल नहीं होता

हिलाल फ़रीद

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आँखों में वो ख़्वाब नहीं बसते पहला सा वो हाल नहीं होता
अब फ़स्ल-ए-बहार नहीं आती और रंज ओ मलाल नहीं होता

इस अक़्ल की मारी नगरी में कभी पानी आग नहीं बनता
यहाँ इश्क़ भी लोग नहीं करते यहाँ कोई कमाल नहीं होता

हम आज बहुत ही परेशाँ हैं इस वक़्त के फेर से हैराँ हैं
हमें ले के चलो किसी ऐसी तरफ़ जहाँ हिज्र ओ विसाल नहीं होता

जितनी है नदामत तुम को अब उतने ही पशीमाँ हम भी हैं
तुम उस का जवाब ही क्यूँ सोचो हम से जो सवाल नहीं होता

वो बस्ती भी इक बस्ती थी ये बस्ती भी इक बस्ती है
वहाँ टूट के दिल जुड़ जाते थे यहाँ कोई ख़याल नहीं होता

इस शहर की रीत को आम करें झुक झुक के सभी को सलाम करें
हर काम तो हम कर लेते हैं यही काम 'हिलाल' नहीं होता