आह क्या क्या आरज़ूएँ नज़्र-ए-हिरमाँ हो गईं
रोइए किस किस को और किस किस का मातम कीजिए
असर सहबाई
इलाही कश्ती-ए-दिल बह रही है किस समुंदर में
निकल आती हैं मौजें हम जिसे साहिल समझते हैं
असर सहबाई
जहाँ पे छाया सहाब-ए-मस्ती बरस रही है शराब-ए-मस्ती
ग़ज़ब है रंग-ए-शबाब-ए-मस्ती कि रिंद ओ ज़ाहिद बहक रहे हैं
असर सहबाई
जिस हुस्न की है चश्म-ए-तमन्ना को जुस्तुजू
वो आफ़्ताब में है न है माहताब में
असर सहबाई
ख़ुदा की देन है जिस को नसीब हो जाए
हर एक दिल को ग़म-ए-जावेदाँ नहीं मिलता
this is a gift from God, the blessed are bestowed
not on every heart is this eternal ache endowed
असर सहबाई
सारी दुनिया से बे-नियाज़ी है
वाह ऐ मस्त-ए-नाज़ क्या कहना
असर सहबाई
सज्दे के दाग़ से न हुई आश्ना जबीं
बेगाना-वार गुज़रे हर इक आस्ताँ से हम
असर सहबाई
तेरे शबाब ने किया मुझ को जुनूँ से आश्ना
मेरे जुनूँ ने भर दिए रंग तिरी शबाब में
असर सहबाई
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
तुम्हारे दर्द को सीने से हूँ लगाए हुए
असर सहबाई