बस यूँही तन्हा रहूँगा इस सफ़र में उम्र भर
जिस तरफ़ कोई नहीं जाता उधर जाता हूँ मैं
अर्श सिद्दीक़ी
देख रह जाए न तू ख़्वाहिश के गुम्बद में असीर
घर बनाता है तो सब से पहले दरवाज़ा लगा
अर्श सिद्दीक़ी
एक लम्हे को तुम मिले थे मगर
उम्र भर दिल को हम मसलते रहे
अर्श सिद्दीक़ी
हाँ समुंदर में उतर लेकिन उभरने की भी सोच
डूबने से पहले गहराई का अंदाज़ा लगा
अर्श सिद्दीक़ी
हम कि मायूस नहीं हैं उन्हें पा ही लेंगे
लोग कहते हैं कि ढूँडे से ख़ुदा मिलता है
अर्श सिद्दीक़ी
हम ने चाहा था तेरी चाल चलें
हाए हम अपनी चाल से भी गए
अर्श सिद्दीक़ी
इक तेरी बे-रुख़ी से ज़माना ख़फ़ा हुआ
ऐ संग-दिल तुझे भी ख़बर है कि क्या हुआ
अर्श सिद्दीक़ी
मैं पैरवी-ए-अहल-ए-सियासत नहीं करता
इक रास्ता इन सब से जुदा चाहिए मुझ को
अर्श सिद्दीक़ी
उठती तो है सौ बार पे मुझ तक नहीं आती
इस शहर में चलती है हवा सहमी हुई सी
अर्श सिद्दीक़ी