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अमीता परसुराम 'मीता' शायरी | शाही शायरी

अमीता परसुराम 'मीता' शेर

10 शेर

दो किनारों को मिलाया था फ़क़त लहरों ने
हम अगर उस के न थे वो भी हमारा कब था

अमीता परसुराम 'मीता'




हम ने हज़ार फ़ासले जी कर तमाम शब
इक मुख़्तसर सी रात को मुद्दत बना दिया

अमीता परसुराम 'मीता'




कौन था मेरे अलावा उस का
उस ने ढूँडे थे ठिकाने क्या क्या

अमीता परसुराम 'मीता'




कोई तदबीर न तक़दीर से लेना-देना
बस यूँही फ़ैसले जो होने हैं हो जाते हैं

अमीता परसुराम 'मीता'




कुछ तो एहसास-ए-मोहब्बत से हुईं नम आँखें
कुछ तिरी याद के बादल भी भिगो जाते हैं

अमीता परसुराम 'मीता'




न हों ख़्वाहिशें न गिला कोई न जफ़ा कोई
न सवाल अहद-ए-वफ़ा का हो वही इश्क़ है

अमीता परसुराम 'मीता'




सुब्ह-ए-रौशन को अंधेरों से भरी शाम न दे
दिल के रिश्ते को मिरी जान कोई नाम न दे

अमीता परसुराम 'मीता'




तुझी से गुफ़्तुगू हर दम तिरी ही जुस्तुजू हर दम
मिरी आसानियाँ तुझ से मिरी मुश्किल है तू ही तू

अमीता परसुराम 'मीता'




वही चर्चे वही क़िस्से मिली रुस्वाइयाँ हम को
उन्ही क़िस्सों से वो मशहूर हो जाए तो क्या कीजे

अमीता परसुराम 'मीता'